Followers

Wednesday, February 6, 2019

प्रेम तुम्हारी मजदूरी में।

पहले उगे,फिर बढ़े,फिर साख बने,

प्रेम तुम्हारी मजदूरी में।

पहले मिट्टी, फिर ईंट, फिर ख़ाक बने,

प्रेम तुम्हारी मजदूरी में।

सारी दुनिया के सितम झेले हैं सिर्फ तुझे खुश करने के लिए।

पहले जले, फिर बुझे, फिर राख़ बने,

प्रेम तुम्हारी मजदूरी में।

::-- विराज वर्मा


No comments:

Post a Comment